Sunday 23 June 2013

शायद तेरा ही नाम खुदा हे......!






यूँ तो,
केहने के लिए सब कुछ हे।
जीने के लिए चंद ज़रूरी सांसे,
दो आँखे,
जो सच ओर सपनो मे,
अब फर्क करना बखूबी सिख गई हे।
दो कान,
जो अब आसपास के इस शोर शराबे के अलावा भी,
कुछ और सुनना चाहते हे।
एक दीमाग जो तेरा-मेरा सच-जूठ,
इन बातों से कभी फुर्सत ही नहीं लेता!

और,
इन सारी human anatomy के बिच,
हे, एक सपनो से भरा दिल!
जो एक मिनट में तक़रीबन यही कुछ ,
७२ बार धड़कता हे।
और हे वही रोज़ भागती एक दुनिया।

केह्ने को तो वक्त भी गुज़र ही जाता हे!
सुबाह होती ही एक कप चाय और टोस्ट,
और वही भागना शुरू!

ओफ़िस में लोगो के accounts चेक करता हुआ में,
अचानक ही थम सा जाता हूँ।
पता नहीं उन फाईलों में क्या ढूंढने लगता हूँ।
और प्यून को बुलाने के लिए बजती boss की घंटी सुनते ही
अपने खयालो की दुनिया से बाहर वही फाईलें।

कई बार,
नज़रे उस दरवाजे पर चिपक सी जाती हे।
और अचानक कोई मिलता-जुलता चेहरा देख के,
एक मुस्कान सी आ जाती हे!
मगर फिर किसी और को पाते ही,
मायूस आँखें उन्ही फाईलों में जांखने लगति हे।
हर राह, हर मोड़ पे तुझे ढूंढता हूँ।
शायद कही तू मिल जाये!

और रात होते ही!
एक अंजान सा डर!
दिन भर जिन यादों जिन परछाईयों से पिछा छुड़ाता रहा,
वो ही एक romantic फिल्म की तरहा आँखों के सामने आ जाएँगी,
ओर सुबाह होती ही!
पलकों पे छोड़ जाएँगे कुछ बुँदे!
वाही तेरे सपने!

केहने के लिए तो,
उन सपनों में ही अपनी ज़िन्दगी जी लेता हूँ।

और फिर सुबाह होते ही!
एक कप चाय और टोस्ट के साथ,
वही रफ़्तार भरी ज़िन्दगी शुरू!

मुझे लगता हे!
शायद तेरा ही नाम खुदा हे!
क्योकि ना तू मेरे साथ होती हे।
ओर ना ही,
इस दुनिया में मुझे कोई इसी जगाह मिली हे,
जहाँ तेरी परछाई नां हो।

                                         - 'सत्य' शिवा    

         
 

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